मंगलवार, 7 मई 2019

क्या कहने

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खुली हवा में साँस लेना 
बरसात में तेरे साथ होना 
क्या कहने 

गुलाबी सूरज का पहाड़ से गेंद सा लुढ़कना
सागर पर चाँदनी का चमचमाना
किसी स्त्री के महंगे साड़ी के आंचल सा 
क्या कहने 

क्या कहने 
उसरात की जिसकी सुबह ही नही हुई 
जब मैं तुम्हारे आग़ोश में लेटा तुम्हें देख-देख 
तुम्हारी तारीफे करता ना थका था 
और तुमने भी खूब वाह-वाही लूटी थी ना 
उसरात

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

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