गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

जीने दो मुझे

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जीने दो मुझे 
बड़ी मुश्किल से मैं जीता हूँ 

खाने को भोजन नहीं मिलता 
पूरे दिन धुप-बतास में भटकता -फिरता हूँ 

आसमान का छत 
माना कि बहुत ख़ूबसूरत लगता है 
गर्मीवाली रातों में 
लेकिन सर्दी और बरसाती रातें 
तन , मन को काट, बाँट देती है 
खुली हवा में 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

8 टिप्‍पणियां:

  1. यही तो त्रादसी है ... जीने के लिए कितना स्ट्रगल है ...

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