मेरे जीवन के प्रभात तुम !
सुबह जो आती है आशा की बरसात तुम !
तुमने मुझे अपनेपन के बाहों में जबसे भरा
मैं गदगद हो
सबसे बोलता-बतियाता फिरता हूँ..
कुछ ना कहा तुमने
कुछ ना कहा मैंने
फिरभी हम घुलने-मिलने लगे है
प्रेम के अनदेखे, अनोखे रंगो में
चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
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