शनिवार, 13 अप्रैल 2019

धर्म, ईश्वर और धर्मउपदेशक

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धर्म 

धर्म दो धारी तलवार है !

अन्धानुसरण भी बुरा है 
और उपेक्षित मन से इसे देखना भी बुरा है 

किन्तु गला तो दोनों ही सुरत में कटना है 


ईश्वर

कोई मुझसे एकदिन पूछ बैठा 
तुम नास्तिक हो कि आस्तिक !
..मन्दिर तो तुम जाते हो लेकिन पूजा-पाठ नही करते क्यों !

मैंने कई तर्क दिए यथा मुझे दूसरे के आस्था की परवाह है इसलिए मन्दिर जाता हूँ..
लेकिन मुझे ईश्वर पर उतना विश्वास नही 
जितना होना चाहिए.. 

दरअसल, आजतक मैंने किसीको नही सुना
यह कहते हुए कि
ईश्वर है !

यह कहते हुए जरुर सुना है कि
ईश्वर है मगर नजर नही आता हरकिसीको ! 


धर्मउपदेशक

धर्मउपदेशक धर्म की व्याख्या मनमानी करते है 
और ईश्वर की प्रशंसा करते नही थकते 

लेकिन उनको मेरा सुझाव है कि
धर्म को कर्म से मिलाये 
और धर्म को धर्म ही बनाये रखने की कोशिश करे 
न कि व्यवसाय !

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

17 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम प्रयास ,धर्म को धर्म ही बनाए रखने की कोशिश करें ना की व्यवसाय अति उत्तम
    किसी भी धर्म का मूल निस्वार्थ ,प्रेम और निस्वार्थ सेवा ही है

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 15 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. इस रचना को " पांच लिंको का आनन्द " में संकलित करने के लिये आभार जी सादर

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  3. बहुत ही सटीक बात प्रिय रवींद्र जी। ईश्वर है या नही ये बात भी आज तक सबसे ज्यादा अपरिभाषित रही। अच्छा लिखा आपने। सच में कर्मण्यता ही जिनका धर्म है उन्हें बेकार के प्रश्नों मे उलझने का समय ही कहाँ है?

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  4. दिलचस्प व्याख्या ...
    अच्छा लगा आपका नजरिया ...

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  5. सरल शब्दों में मन के विचार सहजता से प्रेसित किये आपने जो कि बहुत प्रेरणा दायक हैं।
    साधुवाद।

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  6. अत्यंत प्रभावशाली एवं यथार्थसंगत विचार हैं।

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  7. इस संसार के सभी जीव के लिए हृदय में करुणा भाव और सच्चे हृदय से अपने कर्म पथ पर चलना ही सच्चा धर्म और सच्ची भक्ति हैं ,सादर

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  8. धर्म को कर्म से मिलायें.....
    वाह!!!
    बहुत लाजवाब

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