हम याद आयेंगे
जब यादें भी धुँआ की तरह उड़ती नजर आयेंगी
तुम्हें कोई फर्क नही पड़ता
कि कैसे जी लिया
( जंगल सा सघन जीवन )
और कैसे जीता हूँ
तुम्हारे बगैर
होंठो पर शिकायत रही हमेशा से
बस हृदय खामोश रहा
कि वो कभीभी लौट सकती है
मौक़ा पाते
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशाअल्लाह,
जवाब देंहटाएंकच्चे धागे में चले आएँगे, सरकार बंधे.
बहुत खूब........
हटाएंह्दयतल से आभार आदरणीय
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय सादर
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