तुमसे दूर होने के बाद
सदा
ये एहसास रहा
एक तुम्ही थी जो मुझे अच्छे से समझती थी
जानती थी हर वो बातें
जो हरकिसीसे छिपाए रखा था मैंने
फिर कब मिलना नसीब होगा
यह सवाल
मेरे दिलोदिमाग से टकराता रहता है
दो दीवारों के बीच फेंके गये गेंद की तरह
चित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-04-2019) "परिवार का महत्व" (चर्चा अंक-3318) को पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
--अनीता सैनी
आभार जी सादर
हटाएंचर्चामंच में इस रचना को संकलित करने के लिए