मेरे बिना
तुम तड़पती होंगी न
बिन पानी के मछली की तरह
मेरे बिना
भटकती होंगी न तुम
कस्तूरी को ढूढ़ते
हिरन की तरह
तेरे बिना
पेड़ से गिरा पत्ता हो गया हूँ
समय की हवा चाहे जिस ओर ले जायें
तेरे बिना
बिन मांझी के नाँव हो गयी हैं जिन्दगी
चाहे जिधर पौरती जायें
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत ही कम शब्दों में पूरी तरह अपनी मन की भावनाओं की प्रस्तुति करती बहुत ही अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंसह्दय आभार..... आदरणीय।
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