गुरुवार, 21 मार्च 2019

होरी आ गयों !

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जोगी जी !
होरी आ गयों 
मन भांग खा बौरा गयों 

तुम बजाओ ढोलक 
मैं बजाऊ झाल 

होरी आ गयों ऊधो !
माधो का हैं बस इन्तजार 

ब्रज में 
अबीर, गुलाल धुपछईयां सा छा गयों 
और गोपियाँ 
साँवरा रंग छोड़ 
सब रंग नहा गयी 

तुमहूँ नाँचो राधा प्यारी !
मीरा बैरन नाँची
श्याम खेलन अइहें होरी 
उगे सूरज हुए 
अभी 
पहर एक 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 



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