शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

सुबह हो गई

सुबह हो गई 
उजास फ़ैल गई 

पंछी 
अपने घरौंदें से निकल 
अन्न एकत्र करने में 
जुट गये फिर 

फिर हम काम पर जायेंगे 
तुम्हे साड़ी खरीदना हैं 
लहंगेवाला 
दिनभर हाथ-पैर चलायेंगे
तब न जुटा पायेंगे हम कुछ रूपए..
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आम आदमी शौक क्या ज़रुरत भी पूरी नही कर पाता है. यही अनवरत जीवन... बधाई सुन्दर रचना के लिए.

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    1. आम आदमी शौक क्या ज़रुरत भी पूरी नही कर पाता है.....सत्य कहा आपने
      बहुत-बहुत आभार .....आदरणीया

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