गुरुवार, 26 अगस्त 2021

एक समझौता

 

चलो 
खुदसे
एक समझौता करते है
मुझे नींद आ जाये 
कुछ ऐसा करते है 

जो कुछ मुझे सताता है
तुम्हें नही 
उससे तौबा करते है !

गली, नुक्क्ड़ पर  
बारात आयी थी जो 
कभी 
प्रीत की 
उसे विदा करते हैं 

तुम हवा के साथ बहती हो 
जैसा कि अजीज दोस्त हैं वो तुम्हारा 
उसीके पास रख लो
-अपनी मेरी यादे-
खुदा से एक यही दुआ करते है !

_रवीन्द्र भारद्वाज_





8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर मुझे स्थान देने के लिए अत्यंत आभार आपका 🙏 आदरणीया

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