नदी खामोशी की
बहती जाती हैं
उसके भीतर ही भीतर
वो कुछ कहती नही
किसीसे
आजकल
आजकल
पैसों का बड़ा मारामारी है
बड़ी किल्लत चल रही है
उसके घर
चार दिन हो गये लौटे नही बबुआ के पापा
कही कूछ हो वो न गया हो उनको
दरअसल बिहार मे वो शराब लेकर गये है
कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
चित्र - गूगल से साभार
बेहद मार्मिक रचना....
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबापू धंधा करेंगे शराब का लेकिन अगर मर गए तो शहीद कहलाएंगे.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!
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