गुरुवार, 16 मई 2019

बच्चे भी काम पर जाते है

बच्चे भी काम पर जाते है
जिनके माँ-बाप नही होते 
अनाथ होते है खासकर वो 

वो भी बच्चा जाता है काम पर 
जिसका बाप दिनभर दारू-भाग-चरस 
गांजा पीता है
या जिसकी माँ बस पैसे की भूखी होती है 

मत पूछिए कौन सा काम मिलता है इनको 
जहाँ हम आराम से चाय-समोसे-छोले मज़े से खाते है 
जरा गौर फरमाईयेगा तो 
नाबालिग बच्चों को ही परोसते हुए ज्यादातर पाईयेगा।

अपने घर के पीछे कूड़े-कचरेवाले जगह में 
चिलचिलाती धूप में 
ऐसे ही बच्चे दिखेंगे पॉलीथिन, तेल आदि के डिब्बे और बॉसी रोटियां भी उठाते-खाते हुए

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार

7 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ दर्शन, मर्मस्पर्शी प्रस्तुति।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/05/2019 की बुलेटिन, " मुफ़्त का धनिया - काबिल इंसान - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. वाह!! बहुत खूब । मन को भीतर तक छू गई ।

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  4. विसंगतियों को उकेरती रचना

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