कभी बादलो पर पैर रखकर घूम आये थे
पूरा आकाश
दरअसल, वो प्यार के शुरुआती दिन थे
कभी कड़वी यादें
मीठी बेर सी लगी
वो सबकुछ भूला के बस प्यार में गुम हो जाने के दिन थे
जिगर पर चोट लगे थे तमाम
बस दगा अपनों ने नही किया था
यु कहे तो
वही सबसे खूबसूरत शक्ल थी जिन्दगी की
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
बहुत सुंदर 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार जी आपका सादर
हटाएंमन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !
जवाब देंहटाएंहृदयतल से आभार भाई
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
आभार जी सादर
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 29/04/2019 की बुलेटिन, " अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस - 29 अप्रैल - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन में इस कविता को संकलित करने के लिए आभार आदरणीय सादर
हटाएंबहुत रोचक
जवाब देंहटाएंआज कल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे ...
जवाब देंहटाएंहोता है प्रेम का ये असर ... लाजवाब पंक्तियाँ ...
बिल्कुल सही
हटाएंहृदयतल से आभार आपका आदरणीय
सुंदर पंक्तियां
जवाब देंहटाएंआभार जी सादर
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