रविवार, 21 अप्रैल 2019

आदमी अकेले जीना नही चाहता

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आदमी अकेले आता है 
और अकेले जाता है 

लेकिन अकेले जीना नही चाहता 
ना जाने क्यों !

वह मकड़ी का जाल बुनता है रिश्तों का 
और खुद ही फँसता जाता है 

उस जाल से वह जितना निकलने की कोशिश करता है 
उतना ही उलझता जाता है 

कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

चित्र - गूगल से साभार 

8 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द और उसके अर्थ को
    कतारबद्ध,लयबद्ध किया जाये तो वह गीत होता है,
    जब उसे,रागिनी की माला में पिरोकर
    विभिन्न वाद्य यंत्रों के साथ
    तीनों सप्तकों में तान,आलाप,उठान,लयकारी और भावव्यंजकता के साथ जब कोई राग छेड़ा जाता है तो उसे संगीत कहते है....
    जो व्यक्ति को झूमने को विवश कर दे..
    जो सांसारिक जीवन में भी वैरागी बना दे...
    जो आत्म-साक्षात्कार करा दे....
    जो तमाम व्याधियां मिटा दे....
    जीवन गीतमय हो तो अच्छा है..और
    संगीतमय हो तो और भी अच्छा है.....।।

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  2. सत्य का चित्रण करती, कुछ ही पंक्तियों में सब कुछ बयाँ करती बेहतरीन रचना।

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