शनिवार, 16 मार्च 2019

मिलते रहना यार !

वो 
जब-जब मुझसे मिलती हैं 
फूल जैसे खिलती हैं 

उसका खिलना देखकर 
मैं मन ही मन मुस्काता हूँ 

बातों के कम्पन से लगता हैं 
उसका हृदय स्पंदित होता हैं 
जोर-जोर से 

उसकी शर्म-हया से सराबोर हँसी
मुझसे कहती हैं हरबार
मिलते रहना यार !

रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज

6 टिप्‍पणियां: