वो
जब-जब मुझसे मिलती हैं
फूल जैसे खिलती हैं
उसका खिलना देखकर
मैं मन ही मन मुस्काता हूँ
बातों के कम्पन से लगता हैं
उसका हृदय स्पंदित होता हैं
जोर-जोर से
उसकी शर्म-हया से सराबोर हँसी
मुझसे कहती हैं हरबार
मिलते रहना यार !
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
वाह शानदार रचना
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंहल्की-फुल्की बात मज़ेदार !
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीया
हटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार आदरणीय
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