हवा में तैरती हैं
गूंज तुम्हारी
तुम्हारे दुपट्टे के झुटपुटे
में
थी
जिन्दगी हमारी
किसने किया
हमें तुमसे अलग
चलो
पूछें
आज
उस वक्त की क्या थी मजबूरी
वो वक्त
चुप हैं
मौन के तरह
लेकिन
मौन की प्रकृति
अशांत होती हैं सदा.
रेखाचित्र व कविता - रवीन्द्र भारद्वाज
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