तुम्हारे आने से पहले
घर कबाड़खाना था
अब वही घर
चमकता हैं
दमकता हैं
आशियाना लगता हैं
कमरा आसमान जितना फैला हुआ लगता हैं
दीवारों पर टंगी
तुम्हारी तस्वीरे
मुस्काती रहती हैं सदा
तुम्हे देख-देख मैं भी मुस्का लेता
हू
दिन में दो-चार बार.
रेखाचित्र व कविता -रवीन्द्र भारद्वाज
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